




मणिपुर से आ रही वीडियो दिल दहला देने वाली है। यह पूरे भारत को शर्मशार कर देने वाला वीडियो है। मन व्यथित है कि ऐसे समय में जब हम चांद पर कदम रख रहे हैं , मंगल पर जा रहे हैं, एक आर्थिक/सामरिक/कूटनीतिक शक्ति के तौर पर स्थापित हो चुके हैं वैसे समय में देश के एक महत्वपूर्ण हिस्से मणिपुर में एक अनियंत्रित कबिलियाई तंत्र के रूप में हमारी छवि दुनिया में आज जा रही है। अभी अभी तो मीराबाई चानू ने पदक जीत कर मणिपुर से हमें गौरवान्वित किया था , मैरीकॉम ने हमें मणिपुर से गौरवांवित किया है। तैरते हुए द्वीप वाले लोकटक झील, अपने अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य के लिए “भारत का गहना” कहे जाने वाले मणिपुर का ऐसा चेहरा देश के सामने मन को दुखी कर रहा है।
राजनैतिक विरोध और मतभेदों के बीच महिलाओं को एक टूल की तरह इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ समाज में कड़ा संदेश जाना चाहिए। साथ ही मणिपुर की सरकार को देश को बताना चाहिए कि घटना के 77 दिनों बाद तक सरकार ने अपराधियों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा ? क्या सरकार को अपराध की खबर नहीं थी ?
इस घटना के खिलाफ आज पूरे देश में रोष है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस तक ने सरकार को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दे डाली है। इससे इस घटना की संवेदनशीलता और उस पर सरकार की अकर्मण्यता को समझा जा सकता है कि किस तरह से घटना को सामान्य बनाने का प्रयास किया गया है। शायद इस घटना को अंजाम देने वालों को भारत के इतिहास का ज्ञान नहीं है कि इसी देश में द्रौपदी के चीरहरण का प्रयास करने वालों के खिलाफ पांडवों ने उसी सभा में उसे तबाह करने का प्रण लिया गया था।
उम्मीद है इस घटना पर त्वरित कार्रवाई होगी और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी और होनी ही चाहिए लेकिन इस घटना ने देश पर समाज पर प्रश्नों का एक बड़ा अंबार खड़ा कर दिया है , जिसका जवाब समाज को ढूंढना मुश्किल होगा। क्या हम वैचारिक रूप से इतने पंगु हो चुके हैं कि अपनी मांग को मनवाने के लिए अमानवीय कृत्य को अपनाने से परहेज नहीं करते ? क्या उन मांगों की महत्ता किसी मानवीय मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं से बढ़ कर है ? क्या एक समुदाय को प्रताड़ित कर अपने समुदाय को खुशहाल बनाया जा सकता है ? भारत जैसे विविधताओं से परिपूर्ण राष्ट्र में किसी प्रकार के वैचारिक विरोध में उन विचारों से लड़ने के बजाय उस विचार से सहमत होने वालों से लड़ा जाना उचित है ? वैचारिक मतभेद को सामुदायिक मनभेद में बदलने का उतावलापन क्यों है ? लोगों में इतनी असहिष्णुता क्यों है कि विरोध करने वालों को हिंसात्मक रूप से कुचल देने को आमादा हैं ? अंत में एक सवाल कि ऐसे लोगों को बल कहां से मिल रहा है कि ये किसी भी कुकृत्य को करने से परहेज नहीं करते हैं ?
हम उस परंपरा से आने वाले लोग हैं जहां नारियों को देवी माना जाता है। हमारे वेदों ने यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः को आदर्श बनाया है। अर्थात जहां नारियों का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं और उस समाज को ऐसे लोगों ने कलंकित करने का प्रयास किया है जो न सिर्फ एक समुदाय को कलंकित कर रहा है बल्कि भारत की सभ्यता को भी कलंकित कर रहा है। ऐसे लोगों पर ठोस कार्रवाई कर ही समाज के सामने एक मिसाल कायम किया जा सकता है।
अगर समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो जातिगत/सामुदायिक/धार्मिक मांग को मंगवाने के लिए इस तरह के कुकृत्य होते ही रहेंगे और सिवाय अफसोस करने के हमारे पास कुछ और नहीं बचेगा।
