



व्यापारिक समस्याओं को छोड़कर राजनीतिक एजेंडे पर फोकस करने पर उठे सवाल, अध्यक्ष सोहराब खान और पूर्व अध्यक्ष प्रभात सरोलिया ने जताई तीखी नाराज़गी
धनबाद जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा आयोजित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ संगोष्ठी पर अब संगठन के भीतर से ही विरोध के स्वर उभरने लगे हैं। चैंबर ऑफ कॉमर्स पुराना बाजार के अध्यक्ष और युवा व्यवसायी सोहराब खान ने कार्यक्रम पर गहरी नाराज़गी जताते हुए इसे “राजनीतिक एजेंडे की ओर झुकाव” बताया और कहा कि चैंबर जैसे गैर-राजनीतिक संगठन को व्यापारिक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, न कि किसी पार्टी विशेष के एजेंडे को बढ़ावा देना चाहिए।
व्यापारियों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने का आरोप
सोहराब खान ने कहा कि धनबाद के हजारों व्यापारी रोज़ाना अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं, लेकिन जिला चैंबर ने इन वास्तविक मुद्दों को छोड़कर एक ऐसे विषय को चुना जो वर्तमान में संसद और संवैधानिक संस्थाओं के स्तर पर बहस का विषय है।
उन्होंने चैंबर की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाते हुए कहा:
“धनबाद के व्यापारी ऑनलाइन बाजार से अपनी पारंपरिक दुकानदारी गंवा रहे हैं, जीएसटी की जटिलताओं से हलकान हैं, और ट्रेंड लाइसेंस, होल्डिंग नंबर जैसी बाध्यताओं के कारण काम अटक रहा है। बिजली की लचर आपूर्ति और विधि-व्यवस्था की समस्या व्यापार का गला घोंट रही है। इन मुद्दों पर चुप्पी क्यों?“
सोहराब ने यह भी जोड़ा कि हाल ही में डिजिटल पेमेंट और कैशलेस ट्रांजैक्शन से संबंधित नए नियमों ने व्यापारियों के लिए नई परेशानियाँ खड़ी कर दी हैं। ऐसे में, चैंबर को व्यापारिक समस्याओं की आवाज़ बनना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक विचारधारा का प्रचारक।
चैंबर की गैर-राजनीतिक पहचान को बचाने की अपील
सोहराब खान ने कहा कि चैंबर ऑफ कॉमर्स का गठन एक गैर-राजनीतिक मंच के रूप में हुआ था, जिसका उद्देश्य केवल व्यापार और व्यापारियों की समस्याओं का समाधान करना था।
“धनबाद में व्यापारी अलग-अलग धर्म, जाति और राजनीतिक विचारधाराओं से आते हैं, लेकिन हम सबकी एक पहचान है – व्यापारी। इस एकता को राजनीति के नाम पर खंडित करना निंदनीय है,“ उन्होंने कहा।
उन्होंने तीखे लहजे में कहा:
“जिन्हें राजनीति करनी है, वो चैंबर की आड़ छोड़कर खुले तौर पर राजनीति करें, कोई उन्हें रोक नहीं रहा। लेकिन चैंबर की अस्मिता के साथ खिलवाड़ न करें।”
पूर्व अध्यक्ष प्रभात सरोलिया का भी विरोध
बैंक मोड़ चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष प्रभात सरोलिया ने भी कार्यक्रम की आलोचना करते हुए इसे हास्यास्पद और दिशाहीन करार दिया। उन्होंने कहा:
“जिला चैंबर खुद समय पर चुनाव नहीं करा पाता, ऑडिटेड बैलेंस शीट नहीं दे पाता, लेकिन देश के चुनावी ढांचे पर संगोष्ठी कर रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जैसा गंभीर विषय संसद की ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी में विचाराधीन है, जिसमें देश के सर्वोच्च न्यायालय के वकील और अनुभवी राजनेता शामिल हैं। ऐसे में चैंबर का इसपर चर्चा करना व्यर्थ है, खासकर तब जब व्यापारियों से जुड़े मूलभूत मुद्दों पर संस्था मौन रहती है।
सरोलिया ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा:
“देश के पास इतना इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है कि एक साथ चुनाव हो सके। जब एक राज्य का चुनाव दो-तीन महीने में होता है, तो पूरे देश का चुनाव साल भर में भी नहीं हो पाएगा। और तब पूरे साल व्यापारी आचार संहिता झेलेगा क्या?”
व्यापारी वर्ग में नाराज़गी, चैंबर की भूमिका पर सवाल
चैंबर की हालिया गतिविधियों को लेकर कई व्यापारी संगठनों और सदस्यों में असंतोष की भावना उभर रही है। कई व्यापारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि चैंबर को अपनी मूल भूमिका में लौटना चाहिए और व्यापार से जुड़ी समस्याओं को प्राथमिकता देनी चाहिए।
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस तेज कर दी है कि क्या गैर-राजनीतिक संगठन भी धीरे-धीरे राजनीतिक रंग में रंगते जा रहे हैं? और क्या इससे उनकी विश्वसनीयता और उद्देश्य प्रभावित हो रहे हैं?
धनबाद जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स के ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर आयोजित संगोष्ठी के बहाने शुरू हुई इस बहस ने स्पष्ट कर दिया है कि व्यापारी वर्ग अब केवल प्रतिनिधित्व नहीं, परिणाम भी चाहता है। यदि चैंबर को अपनी साख बचाए रखनी है, तो उसे अपनी मूल दिशा – व्यापार और व्यापारियों के हित – पर लौटना होगा, वरना उसका उद्देश्य ही खो जाएगा।
