आसान वाहन लोन बना रहा आर्थिक बोझ, कारोबारी लोन के कड़े नियमों से बढ़ रही असमानता

आर्थिक विशेषज्ञ बोले- वित्तीय जागरूकता और संतुलित बैंकिंग नीति वक्त की जरूरत

अहमद निसार, आज के दौर में बैंकिंग नीतियों और आम जनता की वित्तीय समझ के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। एक ओर देश में स्वरोज़गार और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देने की बातें होती हैं, तो दूसरी ओर जब कोई आम व्यक्ति व्यवसाय विस्तार, चिकित्सा, शिक्षा या घर मरम्मत जैसे ज़रूरतों के लिए बैंक से लोन लेने की कोशिश करता है, तो उसे कठिन दस्तावेजी प्रक्रियाओं और कड़े नियमों की दीवारों से जूझना पड़ता है।

वहीं दूसरी ओर, वाहन लोन – खासकर दोपहिया और चारपहिया वाहनों के लिए – न केवल बेहद आसान हो गए हैं, बल्कि कई मामलों में बगैर आय प्रमाण के भी फाइनेंस की सुविधा उपलब्ध हो रही है। ‘शून्य डाउन पेमेंट’, ‘तुरंत डिलीवरी’ और ‘बिना इनकम प्रूफ के लोन’ जैसी योजनाओं के जरिए बैंकों और वाहन कंपनियों की साझेदारी में उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा रहा है।

आकर्षक स्कीम, लेकिन भारी कीमत

इन योजनाओं के तहत ग्राहक से केवल आधार और पैन कार्ड मांगे जाते हैं, और कुछ ही घंटों में लोन स्वीकृति मिल जाती है। जबकि कोई व्यक्ति अगर अपने छोटे व्यवसाय के लिए पूंजी जुटाना चाहता है, तो उसे इनकम टैक्स रिटर्न, बैलेंस शीट, संपत्ति के दस्तावेज़, बैंक स्टेटमेंट जैसी ढेर सारी औपचारिकताओं से गुजरना पड़ता है।

कारोबारी वर्ग, खासकर छोटे दुकानदार और स्टार्टअप चलाने वाले युवा इस भेदभाव को लेकर नाराज हैं। वे इसे बैंकिंग सिस्टम का दोहरा रवैया बताते हैं जो आम आदमी को उद्यमी बनने से रोक रहा है।

लोन की चपेट में आम जनता

वाहन लोन की आसान उपलब्धता के चलते कई लोग अपनी आर्थिक हैसियत से अधिक महंगे वाहन खरीद लेते हैं। जब किसी कारणवश ईएमआई समय पर नहीं चुकाई जाती — जैसे नौकरी छूट जाना या आमदनी में गिरावट आना — तो फाइनेंस कंपनियां बिना देर किए वाहन जब्त कर लेती हैं। यह न केवल उपभोक्ता की मानसिक स्थिति पर असर डालता है, बल्कि उसका क्रेडिट स्कोर भी खराब हो जाता है।

धनबाद के रंजीत कुमार, जो एक निजी कंपनी में सेल्समैन हैं, बताते हैं:

“मैंने बिना इनकम प्रूफ के बाइक ली थी। तीन महीने बाद कंपनी से निकाल दिया गया। किश्तें नहीं दे सका, बाइक उठवा ली गई। अब बैंक कहता है मेरा सिबिल स्कोर खराब हो गया है, किसी और लोन की संभावना नहीं बची।”

विशेषज्ञों की राय

वित्तीय मामलों के जानकार इस मुद्दे को गंभीर मानते हैं। उनका मानना है कि लोन वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और संतुलन होना बेहद आवश्यक है। पटना के वित्त विशेषज्ञ डॉ. अनुज श्रीवास्तव कहते हैं:

“वाहन लोन हो या बिजनेस लोन — व्यक्ति की भुगतान क्षमता की जांच तो दोनों ही मामलों में अनिवार्य होनी चाहिए। मगर जब बिजनेस लोन में नियम सख्त और वाहन लोन में बेहद ढीले हों, तो यह नीतिगत असंतुलन है। इससे आर्थिक असमानता और बढ़ेगी।”

वे सुझाव देते हैं कि आरबीआई और वित्त मंत्रालय को इस दिशा में ठोस नीति बनानी चाहिए, जिससे किसी भी प्रकार के लोन के लिए समान मानदंड हों और वित्तीय संस्थान जिम्मेदारी से लोन स्वीकृत करें।

वित्तीय शिक्षा और संतुलित नीति से ही समाधान

विशेषज्ञों का मानना है कि इसका हल केवल नीतियां सख्त करने में नहीं, बल्कि जनता को वित्तीय रूप से जागरूक करने में है। उपभोक्ताओं को समझना होगा कि हर आकर्षक स्कीम उनके लिए उपयुक्त नहीं होती। लोन लेना एक जिम्मेदारी है, और उसके नफा-नुकसान को समझना बेहद ज़रूरी है।

जब तक बैंकिंग प्रणाली में संतुलन नहीं लाया जाएगा और लोगों को आर्थिक फैसलों के प्रति सजग नहीं बनाया जाएगा, तब तक आसान वाहन लोन एक सुविधा से ज्यादा एक ‘कर्ज जाल’ बनकर लोगों की आर्थिक स्थिरता पर सवाल उठाता रहेगा।

The Mirchi News
Author: The Mirchi News

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